
कुंभ सदियों से आध्यात्मिक खोज, एकता और नवजागरण का प्रतीक रहा है। इस बार प्रयागराज में इस प्राचीन परंपरा को नई दिशा दे रही है। प्रयागराज में ‘धर्म, आस्था और जलवायु परिवर्तन’ पर एक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन का उद्देश्य पवित्रता और सतत विकास के बीच पुल बनाना है। विशेष रूप से जलवायु संकट के संदर्भ में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
धर्म की शक्ति
कुंभ सम्मेलन एक सार्वभौमिक सत्य को स्वीकारता है कि जलवायु परिवर्तन पर काबू तभी पाया जा सकता है जब हम सांस्कृतिक मूल्यों को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। विज्ञान जलवायु संकट की चेतावनी दे सकता है, लेकिन धर्म उन मूल्यों की पहचान कर सकता है जो इस संकट से निपटने के लिए जरूरी हैं। धर्म के पास वह सांस्कृतिक ऊर्जा और प्रभावी स्वर है जो लोगों तक पहुंच सकता है।
आध्यात्मिक दायित्व
धार्मिक ग्रंथों में पर्यावरण संरक्षण को आध्यात्मिक दायित्व के रूप में देखा गया है। उदाहरण के लिए, हिन्दू धर्म में प्रकृति संरक्षण मानव का कर्तव्य बताया गया है। अथर्ववेद में पृथ्वी को मां के रूप में सम्मानित किया गया है। इसी तरह, इस्लाम में जल-जीव-जंतु, पेड़-पौधों, सभी में ईश्वर की रूह के दर्शन का उल्लेख किया गया है और बौद्ध एवं जैन धर्म में अहिंसा का सिद्धांत सभी जीवों के प्रति दयालुता और पारिस्थितिक संतुलन की शिक्षा देता है। ये धार्मिक मूल्य पर्यावरण संरक्षण को एक मजबूत नैतिक आधार प्रदान करते हैं।
प्रयोजन में पर्यावरण
कल्पना कीजिए, यदि हर प्रयोजन में पर्यावरण-संरक्षण की भावना हो, तो प्लास्टिक के बजाय मिट्टी, जल, प्राकृतिक रंगों और पत्तों का उपयोग किया जाए, तो न केवल उत्सवों का हिस्सा बन पाएंगे बल्कि जीवन को भी सच्चे अर्थों में उत्सवमय बना सकेंगे। धार्मिक आयोजन समाज को प्रेरित कर सकते हैं। हरित तीर्थयात्राएं, हरित त्योहार, और स्थायी मंदिर प्रबंधन जैसे प्रयास धार्मिक आयोजनों के होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम कर सकते हैं।
सामाजिक सह-श्रवण
धार्मिक समुदाय मानवीय और सामाजिक सह-श्रवण को बढ़ावा देते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली पलायन और जीवन-यापन की स्थितियों का सामना करने में धर्म की शिक्षाएं सहायक सिद्ध हो सकती हैं। संकट के समय धार्मिक संस्थाएं उन संकटों से निपटने के लिए व्यवहारिक समाधान और भावनात्मक समर्थन दोनों प्रदान कर सकती हैं।
हरित धार्मिक स्थल
इस सम्मेलन का मुख्य आकर्षण उत्तर भारत के प्रमुख हरित धार्मिक स्थलों की पहल है। हरित धार्मिक स्थलों को जल, ऊर्जा, कचरा प्रबंधन, और सतत विकास के मॉडल में बदलने के लिए प्रतिबद्ध संस्थाएं शामिल हैं। सारे प्रमुख तीर्थों में, वार्षिक उत्सवों के दौरान प्लास्टिक, रंगों और फूलों के उपयोग को सीमित करना, लोहे और सिंथेटिक पदार्थों के बजाय पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं का प्रयोग करना, और पवित्र स्थलों के आसपास हरित क्षेत्र विकसित करना इसके उद्देश्य हैं।
बदलाव का केंद्र
उत्तर भारत का धार्मिक और सांस्कृतिक परिवेश स्वयं एक बड़ा प्रेरक बन सकता है। जब धर्म और पर्यावरण का संगम होता है, तो यह संकेत मिलता है कि प्रकृति की रक्षा एक आध्यात्मिक कार्य भी है। इसे हम फिर से उसी शक्ति में बदल सकते हैं जो जलवायु संकट से निपटने के लिए आवश्यक है। इस मंच के माध्यम से धर्म समाज को सकारात्मक और शक्तिशाली प्रेरणा दे सकता है।