पर्यावरण और स्वास्थ्य के नजरिए से वर्ष 2021 लंबे समय तक याद किया जाएगा। इस साल हमने मानवता का श्रेष्ठ देखा तो सबसे बुरा भी देखा। साल की शुरुआत कोरोना की दूसरी लहर से हुई। हमारे देश का जो स्वास्थ्य ढांचा था, वह चरमरा गया। लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे, ऑक्सिजन, मेडिकल सप्लाई की कमी थी। लेकिन साल का अंत होते-होते हमने करोड़ों लोगों को वैक्सीन दी। 2021 में जहां लाखों लोग मरे, तो करोड़ों लोगों की जान भी बची, क्योंकि हमने रेकॉर्ड टाइम में वैक्सिनेशन किया। 2021 बताता है कि अगर हम साथ मिलकर तकनीक और विज्ञान का प्रयोग करें तो लोगों की जान बचा सकते हैं, विकास कर सकते हैं।

दिल्ली से ग्लासगो
जहां तक पर्यावरण की बात है, तो 2021 में काफी गंभीर समस्या हमारे सामने खड़ी हुई पर साल का अंत होते-होते हमें एक सुनहरी लकीर भी दिखी, जिस पर देश, सरकार और उद्योगपति साथ में काम करके आगे बढ़ सकते हैं। 2021 में जिस तरह का वायु प्रदूषण हुआ, रेकॉर्ड में वैसा नहीं देखा गया है। 2015 से केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने वायु प्रदूषण की ठीक से मॉनिटरिंग शुरू की। साल 2021 में वायु प्रदूषण का लेवल पिछले पांच-छह साल में सबसे अधिक रहा है। रेकॉर्ड दिखाता है कि पिछले चार-पांच सालों में सबसे अधिक पराली हरियाणा और पंजाब में जलाई गई। दिवाली के अगले दिन ही लखनऊ, दिल्ली या गाजियाबाद में वायु प्रदूषण चरम पर पहुंचा। इसी दिसंबर में दिल्ली में वायु प्रदूषण बेहद गंभीर हो गया था।
ऐसे ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखें। इस साल जो अतिवृष्टि हुई, बाढ़ आई, इसका भी रेकॉर्ड बना। नैनीताल में दिन भर में 400 मिलीमीटर की बारिश हुई, बाढ़ आई। चेन्नै तो लगातार डूबा ही हुआ है। साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में अतिवृष्टि ने हमारे शहरों को रोक दिया। छोटे समय में इतनी अधिक बारिश देखी नहीं गई है। ये साफ दिखाता है कि अतिवृष्टि अभी बढ़ेगी, जिसमें लोगों की मौत बढ़ेगी, आर्थिक दुष्प्रभाव बढ़ेंगे। वहीं इस साल हमने बढ़ती हीट वेव भी खूब देखी।
बात कचरा प्रबंधन की करें तो 2021 में दिखा कि कोविड में जिस तरह से बायो मेडिकल वेस्ट बढ़ा है, उससे हमारे सॉलिड और बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट का ढांचा भी चरमरा गया है। नदियों से जो प्रदूषण कम करना था, उस काम में भी काफी कमी रही। 2021 में यह साफ हो गया है कि हमारी जो गवर्नेंस है, पर्यावरण से संबंधित विभाग हैं, उनमें काफी कमजोरी है। लेकिन 2021 का अंत होते-होते ग्लासगो क्लाइमेट समिट में प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया कि भारत 2070 तक कार्बन डाई ऑक्साइड सहित जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार गैसों का उत्सर्जन शून्य पर लेकर आएगा। यह बहुत बड़ा कमिटमेंट है, पर्यावरण के क्षेत्र की सुनहरी रेखा है। साथ ही भारत ने अगले दस साल के टारगेट का भी ऐलान किया, जिसके तहत हम पचास फीसदी एनर्जी अक्षय ऊर्जा से लेंगे। यानी जो बाकी के ऊर्जा स्रोत हैं, मसलन कोयला, तेल या गैस- उसका इस्तेमाल कम करेंगे। अक्षय ऊर्जा स्रोत, जैसे सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा बढ़ाएंगे।
अब सवाल उठता है कि साल 2022 में क्या हो सकता है? एक चीज तो मानकर चलना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन का हमारे देश में प्रभाव बढ़ेगा। इसका हमारी अर्थव्यवस्था, खेती और पानी की सप्लाई पर प्रभाव होगा। हमें अब जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निदान के तरीके पर काम करने की जरूरत है। इसके लिए अब सिर्फ केंद्र सरकार को काम करने की जरूरत नहीं है। केंद्र का तो पूरा निर्देशन रहेगा, फंडिंग भी। लेकिन अब राज्य सरकारों को स्थानीय स्तर पर एडॉप्टेशन प्लान लागू करने की जरूरत है। मसलन, अगर अतिवृष्टि होने वाली है तो हमें अच्छे चेतावनी सिस्टम लगाने की जरूरत है ताकि क्षति कम हो। हीट वेव के लिए शहरों में ‘हीट कोड’ बनाने करने की जरूरत है। मतलब, अगर तापमान बहुत तेजी से बढ़े तो लोगों को बता दिया जाए कि वे घर में ही रहें। आउटडोर वर्क कम करके हॉस्पिटल और पानी मुहैया कराया जाए। हमें लोकल गवर्नेंस लेवल पर 2022 से काम करने की जरूरत है। अब तक हमने उस पर बहुत काम नहीं किया है। अब हमें जिला और ब्लॉक लेवल पर काम करना होगा। 2022 में यह काम पूरा नहीं हो पाएगा, लेकिन 2022 में हम शुरुआत कर सकते हैं।
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प्रधानमंत्री ने जो ग्लासगो में अक्षय ऊर्जा का जो ऐलान किया, उसके लिए पैसे भी चाहिए होंगे। इस पैसे को लाने के लिए हमें अब उन इंडस्ट्रीज को प्रोमोट करने की जरूरत है, जो हमारे यहां आकर अक्षय ऊर्जा स्रोत लगाएं। यह पहला काम है। इसका दूसरा फायदा यह होगा कि अक्षय ऊर्जा बढ़ेगी तो कोयला कम होगा। पूर्वी और मध्य भारत में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, और मध्य प्रदेश इसके बड़े आर्थिक स्रोत हैं। तो कोयला धीरे-धीरे ही कम होगा। मगर उससे इन इलाकों पर क्या आर्थिक प्रभाव पड़ेगा, इस पर भी हमें काम करना होगा। 2022 में जो ट्रांजिशन होने वाला है, उस पर भी चर्चा करने की जरूरत है।
एक्शन का 2022
2022 में हमें जलवायु परिवर्तन, एनर्जी ट्रांजिशन, स्थानीय प्रदूषण के गवर्नेंस पर फोकस करना होगा। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड सहित पर्यावरण पर काम करने वाली संस्थाओं को भी मजबूत बनाने की जरूरत है। 2022 का अजेंडा गवर्नेंस रिफॉर्म, स्ट्रेंथनिंग एक्शन का अजेंडा होना चाहिए, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव अपने आप तो कम होने वाले नहीं हैं। यह सब जमीनी स्तर पर होना चाहिए, चाहे वह प्लास्टिक कम करने की बात हो, या कचरा प्रबंधन की। क्योंकि 2021 में हमने देखा है कि बुरा क्या हो सकता है और अच्छा क्या हो सकता है। मेरी यह कामना है कि 2022 में हम अच्छाई पर काम करें, और देश को आगे बढ़ाएं।